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आप जो हमारे होते

Written By Prakash Badal on Friday, December 28, 2012 | 11:34 AM

हिमाचल प्रदेश की राजधानी से 32 किलोमीटर दूर ठियोग कस्बे में साहित्यिक और सामाजिक चेतना की संस्था ‘सर्जक’ अरसे बाद सक्रिय हुई है। 10 दिसम्बर 2011 को संस्था द्वारा आयोजित साहित्यिक संगोष्ठी इस का जीता जागता प्रमाण है। दो सत्रों की इस गोष्ठी में प्रथम सत्र में “समकालीन सहित्य और हिमाचली लेखक” विषय पर चर्चा हुई और द्वितीय सत्र में “कवि गोष्ठी का आयोजन था। गोष्ठी ने अनेक चुनौतियाँ के बावजूद भी बहुत सफल रही।‘सर्जक’ का उत्साह देखते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार और पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ0 सत्यपाल सहगल ने तो ठियोग को हिमाचल के संदर्भ में साहित्यिक राजधानी घोषित कर दिया। यद्यपि बहुत से लोग हवाओं और मौसमों के कान भरते नज़र आए, लेकिन किसी की एक भी न चली। ‘सर्जक’ के इरादों और मंशा के आगे सब कुछ सामान्य नज़र आने लगा। जब साहित्यकारों का हुजूम गोष्ठी में उमड़ा तो यह तो स्पष्ट हो ही गई कि ‘सर्जक’ की गोष्ठी कोई ‘गाजा-बाजा’ नहीं बल्कि एक ऐसा संगीत है, जिससे साहित्यिक गलियारों में ऐसी थिरकन पैदा होती है, जो हर लिखने वाले के भीतर एक छटपटाहट पैदा करती है, जैसी किसी सुरमई संगीत सुनकर एक सुधि श्रोता को होती है और हर कोई सर्जक हो उठता हैं।
इस साहित्यिक गोष्ठी में प्रथम सत्र पर चर्चा के लिए डॉ0 निरंजन देव शर्मा और नवनीत शर्मा को चुना गया था। आते-आते नवनीत तो नहीं आए लेकिन उनका “इमोशनल अत्याचार” करता हुआ मेल ही ‘सर्जक’ तक पहुँच पाया। बहुत से अपेक्षित लेखक ठियोग नहीं पहुँच पाए। राजकुमार राकेश भी आयोजन में नहीं पहुँचे और न ही जनपथ के स्थाई संपादक अनंत कुमार सिंह। इसके बावजूद भी गोष्ठी खूब जमी। डॉ0 निरंजन देव का पर्चा विषय पर केंद्रित नहीं हो पाया। समकालीन संदर्भ में निरंजन केवल उन्हीं हिमाचली लेखकों के नाम उल्लिखित कर पाए जो उनके अधिक करीब हैं। कुलदीप शर्मा, विक्रम मुसाफिर, जीतेंद्र शर्मा और कुछ और समकालीन कवियों के तो नाम भी उनके पर्चे से ग़ायब नज़र आए। इसके बावजूद जिन कवियों की चर्चा पर्चे में हुई, उनकी रचनाओं का तो उल्लेख तक पर्चे में कहीं नज़र नहीं आया। अधिकतर लेखकों का मानना था कि समकालीन लेखन पर चर्चा होनी चाहिए थी जो नहीं हो सकी। ‘सेतु’ पत्रिका के संपादक डॉ0 देवेन्द्र गुप्ता ने भी हिमाचली साहित्य पर एक पर्चा पढ़ा लेकिन वह भी चर्चा के विषय से अलग-थलग नज़र आया, लेकिन हिमाचल में साहित्यिक गुटबाजी से डॉ0 गुप्ता भी काफी दुखी नज़र आए। बहुत से लेखकों ने चर्चा में भाग लिया तो सही लेकिन मुद्दे की बात पर चर्चा वहाँ से भी नहीं हो पाई। राजेंद्र राजन ने कहा कि लेखक होने के लिए उसकी सारी रचनाएँ उत्कृष्ट होना ज़रूरी नहीं है, उन्होंने सुरेश सेन ‘निशांत’ और एस0 आर0 हरनोट को हिमाचली लेखन की धरोहर बताया। उनके अनुसार अच्छी रचानाएं रुक नहीं सकतीं वो आगे बढ़कर रहती हैं। राजन ने इस बात पर दुख जताया कि हिमाचल की रचनाशीलता की जब बात आती है तो मात्र कुछ ही लेखकों की चर्चा होती है, जो दुखद है। हिमाचल में हो रहे लेखन की यदि बात हो तो सभी लेखकों पर चर्चा होनी चाहिए।
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