चिकने चेहरे इतने भी सरल नहीं होते।
ये वो मसले हैं जो आसानी से हल नहीं होते।
कुछ ही पलों की चमक और खुशबू इनकी,
ये फूल किसी का कभी संबल नहीं होते।
भूखों में बाँट दीजिए जो बचा रखा है,
जीवन के हिस्से में कभी कल नहीं होते।
शायर वो क्या, क्या उनकी शायरी,
जो ख़ुद झूमती हुई ग़ज़ल नहीं होते।
कोख़ माँ की किसी को न जब तलक मिले,
बीज कैसे भी हों, फ़सल नहीं होते।
विवशताओं ने पागल कर दिया होगा,
ख़्याल बचपने से कभी चँबल नहीं होते।
जम गई होगी वक्त की धूल वरना,
आईने की प्रकृति में छल नहीं होते।
(दिल्ली में मेरा एक छोटा भाई रहता है "अमित के साग़र "ये ग़ज़ल उसी को समर्पित है।)
ये वो मसले हैं जो आसानी से हल नहीं होते।
कुछ ही पलों की चमक और खुशबू इनकी,
ये फूल किसी का कभी संबल नहीं होते।
भूखों में बाँट दीजिए जो बचा रखा है,
जीवन के हिस्से में कभी कल नहीं होते।
शायर वो क्या, क्या उनकी शायरी,
जो ख़ुद झूमती हुई ग़ज़ल नहीं होते।
कोख़ माँ की किसी को न जब तलक मिले,
बीज कैसे भी हों, फ़सल नहीं होते।
विवशताओं ने पागल कर दिया होगा,
ख़्याल बचपने से कभी चँबल नहीं होते।
जम गई होगी वक्त की धूल वरना,
आईने की प्रकृति में छल नहीं होते।
(दिल्ली में मेरा एक छोटा भाई रहता है "अमित के साग़र "ये ग़ज़ल उसी को समर्पित है।)
बादल जी ... बहुत ही सुंदर और अच्छी रचना ... क्या बात है मज़ा आ गया
ReplyDeleteअनिल कान्त
www.anilkant.blogspot.com
सुंदर भाव पूर्ण रचना ! बहुत खूब !
ReplyDelete"जम गई होगी वक्त की धूल वरना,
ReplyDeleteआईने की प्रकृति में छल नहीं होते।"
सुन्दर पंक्तियां. अच्छी गजल.
BAHOT BAHOT BADHAI AAPKO SAHAB... BEHATARIN GAZAL KE LIYE ...
ReplyDeleteARSH
बहुत सही लिखा है आप ने , सुंदर गजल के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteचिकने चेहरे इतने भी सरल नहीं होते।
ReplyDeleteये वो मसले हैं जो आसानी से हल नहीं होते।
वाह साहब! बहुत ही ज़बरदस्त...
गज़ल में ईमानदारी और अपनापन है....बधाई।
क्या बात है प्रकाश जी...भई क्या बात है
ReplyDelete"शायर वो क्या, क्या उनकी शायरी/जो ख़ुद झूमती हुई ग़ज़ल नहीं होते" और "कोख़ माँ की किसी को न जब तलक मिले/बीज कैसे भी हों, फ़सल नहीं होते" और "जम गई होगी वक्त की धूल वरना/आईने की प्रकृति में छल नहीं होते"- लाजवाब शेर...बिछ गये हम तो
अमित को ढ़ेर सारा प्यार
uncle your blog is so good as like you and your gazals are so meaningful....................................salam aap ko.
ReplyDeleteवाह प्रभु !
ReplyDeleteक्या लिखते हैं आप,
एक एक पंक्ति बोलती है
aapne bahut hi acchi aur vaawpurn gazal likhi hai
ReplyDelete"बड़े भाई" के ब्लॉग पर सभी टिप्पडीकारों का मैं तहे-दिल से आभार व्यक्त करता हूँ.
ReplyDeleteलव यू आल ऑफ़ यू & लव यू बड़े भाई.
---
आदरणीय गौतम जी' प्रणाम.
---
ग़ज़ल के बारे में क्या कहूँ
बस मन करता है-
हर ग़ज़ल को साथ लिए फिरूँ
---
वाह! क़यामत तक!
---
अमित के सागर
इस ग़ज़ल की तारीफ़ कैसे करू मुझे कोई उपयुक्त शब्द ही नही मिल रहा ,,,,,,,,,,,
ReplyDeleteआप का हर एक ग़ज़ल सोचने को मजबूर करता है और हर बार कुछ अच्छी सोच को जागृत करने में सफल होता है
विवशताओं ने पागल कर दिया होगा,
ReplyDeleteख़्याल बचपने से कभी चँबल नहीं होते।
प्रकाश जी
बहुत ही खूबसूरत है ये ग़ज़ल, जब इसको मैंने हिन्दी-युग्म पर पढा था अब भी मुझे ये शेर बहुत पसंद आया था. जहाँ तक आपके मीटर का सवाल है, मैं इसे यूँ समझता हूँ की "व्यवस्था से विद्रोह करने वाला ही कुछ कर सकता है, यह हर किसी के बस की बात नही, जो धारा के विरूद्ध चलता है वो ही अपनी राह बनाता है"
बादल जी
ReplyDeleteअभी शिमला के ब्लोगरों को खोज रहा था. तो आप मिल गए. बस, केवल एक ही हिंदी ब्लोगर!!!
भाई, आपकी गजल के बारे में कुछ नहीं कहूँगा, मतलब फिर कभी कहूँगा. ये बताओ कि आप शिमला में ही रहते हो या कहीं और? आखिर मै मुसाफिरी से मजबूर हूँ.
यथार्त से परिचय कराती लयबद्ध रचना , धन्यवाद
ReplyDeletebahut achchha likha apne.
ReplyDeletebhaut hi ghare suljhe hue khyaal ko samete hue gazal
ReplyDeletebhaut achha laga padhna
kaash kar last sher
aaine ki parkti main chhal nahi hote
prakash bhaiya... bahut khoob... :)
ReplyDelete"विवशताओं ने पागल कर दिया होगा,
ख़्याल बचपने से कभी चँबल नहीं होते।
जम गई होगी वक्त की धूल वरना,
आईने की प्रकृति में छल नहीं होते।"
इस गणतंत्र दिवस पर यह हार्दिक शुभकामना और विश्वास कि आपकी सृजनधर्मिता यूँ ही नित आगे बढती रहे. इस पर्व पर "शब्द शिखर'' पर मेरे आलेख "लोक चेतना में स्वाधीनता की लय'' का अवलोकन करें और यदि पसंद आये तो दो शब्दों की अपेक्षा.....!!!
ReplyDeleteअरे वाह ...!! ये तो वही है जो हिंद युग्म पर पढ़ी थी...........
ReplyDeleteयहाँ तिरंगे की छत्रछाया में और भी लुभावनी लग रही है...
मजा आ गया...........
आपको भी गणतंत्र दिवस की मुबारकबाद...............
भई वाह बादल जी आपका अपना ही अंदाज़ है बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteचिकने चेहरे इतने भी सरल नहीं होते।
ReplyDeleteये वो मसले हैं जो आसानी से हल नहीं होते।
--बस, इतनी ही पूरी है. पूर्ण सक्षम, किसी भी पूरी गज़ल के सामने.
कमाल कर दिया आपने. मेरा दुर्भाग्य जो इन ५ दिनों इस पर नजर न गई.
आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं एवं बधाई.
लिखते रहें, मेरी शुभकामनाऐं सदैव आपके साथ हैं. विलम्ब से आने के लिए क्षमाप्रार्थी.
आपका लेखन प्रभावी लगा
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं एवं बधाई.
ReplyDeleteprakash bhai, gannatantra divas ki shubhkamnaye.
ReplyDeleteGazab dhati hain aapki ghazalen. Aaz pahli baar aapka blog padha. Mazaa aa gaya. Aisi hi dhardaar ghazalen ikhte rahiye.------ ANURAG
ReplyDeleteक्या खूब कहा है-
ReplyDeleteकोख़ माँ की किसी को न जब तलक मिले,
बीज कैसे भी हों, फ़सल नहीं होते।
मीटर तो भैया आप जाने लेकिन दिल को छू गई आपकी गजल।
bhaiya jaisa aapne kaha hai.. main zarur padhunga. bas ek baar exams khatm ho jaye fir padhna shuru kar dunga. :)
ReplyDeletePuneet Sahalot
जम गई होगी वक्त की धूल वरना,
ReplyDeleteआईने की प्रकृति में छल नहीं होते।
chma chahti hun der hui...aayi to pehle bhi thi pr comt kaise chut gya pta nahin.....pta nahin aayine ne ki prakirti kaisi hoti hai apna to aayina hi tukde tukde hai...bharhaal bhot acchi gazal....!
जम गई होगी वक्त की धूल वरना,
ReplyDeleteआईने की प्रकृति में छल नहीं होते।
chma chahti hun der hui...aayi to pehle bhi thi pr comt kaise chut gya pta nahin.....pta nahin aayine ne ki prakirti kaisi hoti hai apna to aayina hi tukde tukde hai...bharhaal bhot acchi gazal....!
aapki sabhi ghazalelajwaab hai.
ReplyDeleteYE TIPPNAI KEWAL ISI POST KE LIYE NAHI HAI....
ReplyDeleteJAB MAIN AAPKE BLOG MEIN AAYA TO PEHALI GHAZAL NE ITNA PRABHAVIT KIYA KI SAB KE SAB PAD DALI.
KAUNSI GHAZAL KA KAUNSA CHAND BADIYA HAI KEHNA HI NAHI BAN PADTA APPKA AUR MUFLIS JI KA BLOG MUJHE AISA LAGA KI ....
KAASH 1 AUR RACHAN HOTI....
KAASH 1 AUR RACHNA HOTI....
(SAMAJH NAHI PAYA HOON KI JIS DIN BHOJAN SWADISHT BANTA HAI US DIN KAM PAD JAATA HAI YA BHOJAN SWADISHT HOTA HAI ISLIYEA KAM PAD JATA HAI?)
VAKAYI EK SE BHADKAR EK LAZIZ RACHNA....
(GHAZAL NAHI KEH RAHA HOON KYUNKI AAP AUR MEIN DONO METER KA KHYAL NAHI RAKHTE.)
AAP JAB BHI KOI NAI GHAZAL POST KAREIN....
TO MERA VAADA HAI KI PEHLI TIPPNAI MERI HOGI......
...NAHI KAHUNGA KI BADHAI SWIKAREEIN, NAHI KAHUNGA KI MERE BLOG MEIN AAYEAGA, NAHI KAHUNGA KUCH BHI AUR.
KYUNKI AAPKI YE TAARIF UNCONDITIONAL HAI....
SABHI PATHAKOON SE ANUROODH KARTA HOON KI JAB AAP KISI KE BLOG MEIN JAIYEN AUR APKO RACHNA PASAND AAIYE TO AUR RACHNAEIN BHI PADHEIN....
NAHI TO AAP KYA MISS KAREINGE....
YE BADAL JI KE BLOG SE PATA CHALTA HAI.....
BALKI HONA TO CHAHIYE KI SABI PURATAN RACHNA MEIN KAVI APNA SABSE ZAYADA MAN LAGATA HAI.
"AFTER ALL IT'S VIRGIN !!"
ITNA SAB KUCH LIKHNE KE LIYE KSHMA KARIYEGA.
......DHANVYAAD.......
bahut achi gajal likhi hai apne...
ReplyDeleteayene ki prakuti main kabhi chal nahi hote... main prakuti shabd kuch atpata sa laga.
sir,maine apne blog ka address badal diya hai,aap is pate par aayiega:
ReplyDeletehttp://hindisarita.blogspot.com
भूखों में बाँट दीजिए जो बचा रखा है,
ReplyDeleteजीवन के हिस्से में कभी कल नहीं होते।
Waah ! Waah ! Waah !
Harek sher lajawaab ! Jitne sundar bhaav hain utni hi sundar abhivyakti bhi.Bahut bahut sundar.Badhai swikaren.
अमित को बधाई कि उन को इस तरह के अग्रज मिले.
ReplyDelete"भूखों में बाँट दीजिए जो बचा रखा है,
जीवन के हिस्से में कभी कल नहीं होते।"
क्या सशक्त अभिव्यक्ति है. दो पंक्ति में सब कुछ कह गए!!
सस्नेह -- शास्त्री