असिक्नी पत्रिका में प्रकाशित गज़ल भाई मनु, अरुण डोगरा और अर्श भाई के लिए थी, मित्र का कोई और ही अर्थ न निकाल लिया जाए इस लिए सूरत साफ कर दी जाए तो अच्छा।
ये कैसी घृणा की नदी तेरे मेरे बीच,
है एक पुल की कमी तेरे मेरे बीच।
तूने ही पटरियाँ बराबर न की,
थी प्यार की तो रेल चली तेरे मेरे बीच।
न मुझे सोने दिया, खुद भी जग रहा,
कुछ यूँ रातें कटीं तेरे मेरे बीच,
सूरज को कब रोक पाईं सरहदें,
है बराबर सी धूप बँटी तेरे मेरे बीच
ये कैसी घृणा की नदी तेरे मेरे बीच,
है एक पुल की कमी तेरे मेरे बीच।
तूने ही पटरियाँ बराबर न की,
थी प्यार की तो रेल चली तेरे मेरे बीच।
न मुझे सोने दिया, खुद भी जग रहा,
कुछ यूँ रातें कटीं तेरे मेरे बीच,
सूरज को कब रोक पाईं सरहदें,
है बराबर सी धूप बँटी तेरे मेरे बीच
बहुत खूब !
ReplyDeleteइस रचना ने लगभग नौ महीनों का समय ले लिया। जल्दी से इसे पूर्णता प्रदान करें। हमें इंतज़ार है।
वैसे फेसबुक पर आपको दोस्तों की सूची लगभग 1600 हैं, कैसे याद रखते हैं इतनों को। आपकी हार्ड डिस्क का जवाब नहीं।
- नीलम शर्मा 'अंशु'
देर आयद दुरुस्त आयद ... वेसे काफी देर हो गयी इस बार ..... बे- बहर में आपका कोई सानी नहीं ... इसको जल्द से मुकम्मल का जामा पहना दें ... खुबसूरत रचना के लिए दिल से बधाई....
ReplyDeleteअर्श
डिम्पल जी का आभार, नीलम जी से तो फोन पर लम्बी बात हुई, और अर्श भाई से जबरदस्ती टिप्पणी लिखवाई
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता जी, धन्यवाद
ReplyDeleteशुक्रिया राज भाई आप हर बार की तरह इस बार भी आए।
ReplyDeleteअरे वाह याद आ गई इस ब्लॉग की। अहोभाग्य हम सब लोगो का कि कोई खोया ब्लॉगर वापस आ गया। गजल अच्छी बन पड़ी है। पर इतने दिन क्या किया इसका लेखा जोखा भी लिखें।
ReplyDeleteरोहित भाई शुक्रिया आपने याद रखा ये ही बहुत है
ReplyDeleteबिरादर इतने दिनों का लेखा जोख तो दें। कहां रहें क्या करते रहे......>
ReplyDeleteवाह...बहुत खूब...बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...
ReplyDeleteकितना सही कहा है आपने....
लिखते रहिये...पोस्टों की आवृति बढाइये...शुभकामनाएं..
छप चुकी है...फिर भी अभी तक काम चल रहा है जी...?
ReplyDeleteये तो वही ग़ज़ल है जिओ दो साल रात पहले ११ बजे आपने फोन पे सुनाई थी...
इतने अरसे बाद आप ये हमें समर्पित कर रहे हैं...
मनु भाई समर्पित इसलिए कि मुझे लिखने पर मज़बूर कर दिया आपने
ReplyDeletebahut dino baad aapke blog par aana hua...
ReplyDeletebahut khoob likha hai... is blogging ne hum sbko is tarah jod diya h jaise koi rishta hai tere mere bich :)
बहुत खूब...
ReplyDelete..अच्छा लगा आपको पढ़कर।
आज आपका जन्म दिन है..ढेर सारी बधाई।
ReplyDeleteबेचैन आत्मा का शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता| धन्यवाद|
ReplyDeleteबेहतर कोशिश
ReplyDeletenice words you have chosen
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
वाह बदल जी ...अति सुंदर गजल ....ये केसी घृणा की नदी है तेरे मेरे बीच...यूँ तो आप हिमाचल के हर रचनाकार के ब्लॉग पर नजर आते हैं लेकिन आपने जो हिमाचली रचनाकार को नेट से जोड़ने का काम किया है इसके लिए हिमाचली साहित्य जगत आपका आभारी रहेगा | हमें आप पर गर्व है |
ReplyDeletebahut sundar prakash bhai;.; badhiya gazal... diwali kee hardik shubhkaamna !
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