डिप्रैशन में हूँ,परेशान हूँ लज्जित भी। मैंने जिस भाषा को अपनी कल्पना से भी दूर रखा, उसी भाषा का इसतेमाल करने का आरोप मुझ पर लगाया जाए तो भला एक संवेदनशील व्यक्ति के लिए इससे बड़ी शर्मिंदगी की बात क्या हो सकती है। एक लेखक को लिखने की इतनी बड़ी सज़ा मिलती है तो मुझे इस अंतरजाल के मायाजाल में नहीं फंसना। लिखने और अपने लिखे को पाठकों तक पहुँचाने के और मंच भी तो होते हैं। मेरे खिलाफ किए जा रहे दुःष्प्रचार को आप यहाँ से देख सकते हैं। आप में से बहुत से ब्लॉगर तो मुझे अच्छी तरह जानते और पहचानते हैं, अब फैसला आप पर छोड़ता हूँ आप ही फैसला करें कि जिस प्रकार के इल्ज़ाम मुझ पर लगाए गए हैं क्या मैं ऐसा कर सकता हूँ। ये उन शरारती तत्वों की एक घिनौनी हरकत है जो मेरे उस कमैंट से परेशान हैं जो मैने हरकीरत हकीर की नज़्म चोरी होने की उनकी शिकायत पर अपने विरोध जताते हुए किये थे। कितनी पीड़ा के बाद कोई लेखक अपनी रचना लिखता है उस रचना में लगे श्रम का महत्व लेखक ही जानता है। किसी रचनाकार की रचना को चुराने का विरोध करना अगर गुनाह है तो मैने गुनाह किया है। और मेरा यह विरोध जारी भी रहेगा। लेकिन मुझ पर उन शब्दों का प्रयोग करने का इल्ज़ाम बिल्कुल निराधार है जो "भड़ास" ब्लॉग पर प्रकाशित किया गया है। लेकिन मुझ पर फैंके गये इस कीचड़ से बहुत आहत हूँ और ब्लॉगिंग की इस दुनिया से विदा लेने के निर्णय पर विवश हूँ। अगर आप इसे मेरी हार मानते हैं तो मैं अपनी हार भी स्वीकार करता हूँ यह किसी और के साथ भी होने वाला है अगर हम लेखन के इस "आतंकवाद" को बर्दाश्त करके ही लिखना है तो मैं इसमें नहीं जीना चाहता। मुझे विदा लेनी है। क्षमा याचना के साथ!
सादर!
आपका
प्रकाश बादल।
मेरी ये रचना उन सभी चिंतकों के प्रति अंतर्जाल पर् अंतिम प्रस्तुति के रूप में प्रस्तुत है। क्योंकि ऐसा लगता है कि यह रचना इसी समय के लिए फिट बैठ रही है।:
कई रोज़ हो बेशक ठहरे आवाज़ों के बीच।
क्या माने रखते हैं बहरे आवाज़ों के बीच॥
चुपके से वो सन्नाटों में ज़हर घोल कर चले गये,
आप दे रहे हैं पहरे आवाज़ों के बीच।
अपनी शरारतों पर हम सूरज को कोस रहे,
बेमौसम क्यों जलीं दोपहरें आवाज़ों के बीच।
बारूद और बर्बादी से आगे ही हैं फैल रहे,
नफरत के जो भाव हैं गहरे आवाज़ों के बीच।
जो कटता है कट जाने दे जो घटता है घट जाने दे,
जीना है तो कुछ मत कह रे आवाज़ो के बीच।
सादर!
आपका
प्रकाश बादल।
मेरी ये रचना उन सभी चिंतकों के प्रति अंतर्जाल पर् अंतिम प्रस्तुति के रूप में प्रस्तुत है। क्योंकि ऐसा लगता है कि यह रचना इसी समय के लिए फिट बैठ रही है।:
कई रोज़ हो बेशक ठहरे आवाज़ों के बीच।
क्या माने रखते हैं बहरे आवाज़ों के बीच॥
चुपके से वो सन्नाटों में ज़हर घोल कर चले गये,
आप दे रहे हैं पहरे आवाज़ों के बीच।
अपनी शरारतों पर हम सूरज को कोस रहे,
बेमौसम क्यों जलीं दोपहरें आवाज़ों के बीच।
बारूद और बर्बादी से आगे ही हैं फैल रहे,
नफरत के जो भाव हैं गहरे आवाज़ों के बीच।
जो कटता है कट जाने दे जो घटता है घट जाने दे,
जीना है तो कुछ मत कह रे आवाज़ो के बीच।
श्री प्रेम भारद्वाज की रचना की दो पंक्तिया भी यहाँ सही बैठ रही है।
"सच कहने की जो अपनी आदत है।
उनके शब्दकोश में बग़ावात है।"
बादल भाई साहिब ब्याक्तिगत तौर से मैं आपको जानता हूँ आप इस तरह की बात तो कभी सोच भी नहीं सकते ... इस बात से कोई कितना आहात हो सकता है मैं समझ सकता हूँ यह सरासर निंदनीय है और शर्मनाक भी ... इसे सिरे से खारिज किया जाता है जो इल्जाम आप पे लगाया गया है .. मैं उन महानुभावों से अनुरोध करता हूँ के कृपया करके इस सरल स्वाभाव के इंसान के प्रति ऐसा ना करें... ये हमारे ऊपर उपकार होगा आपका... किसी को इसतरह से जलील ना किया जाए ... और भाई साहिब आपको इस तरह से छोड़ के जाने का कतई हक़ नहीं है हमारे बिच से आपको जाने की कोई अनुमति नहीं है नहीं जाने दूंगा आपको ब्लॉग से अगर आप गए तो ये मेरा भी वादा रहेगा के आज के बाद से मैं भी लिखना बंद कर दूंगा आपको मेरे लिए या हम सब ब्लोगेर के लिए रहना है ये आप पे छोड़ता हूँ के आप क्या चाहते है क्या मैं लिखूं या नहीं ... मेरी लेखनी का भविष्य आप पे है अब ... आपका
ReplyDeleteअर्श
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
ReplyDeleteब्लाग को व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का साधन बनाया जाये, न कि गाली-गलौज का अड्डा। गलत बात का विरोध करना बहुत आवश्यक है, नहीं तो गलती करने वाले को ही बल मिलता है। लेकिन विरोध करने का तरीका गाँधी से सीखा जाये, न कि गोडसे से।
ReplyDeleteइस तरह के वाकिया सामने आते रहते है । आपको क्या करना है आप अच्छे से जानते हैं ।
ReplyDeleteAap ka faisla...
ReplyDelete..Koi tippani nahi!
:(
are bhai itna serious mat lijiye bhadasiyon ko...inka kaam hi hai yahi..mere saath bhi hua tha.
ReplyDeleteaap to apna kaam kiya jaaiye.
दुष्यन्त जी की पँक्तियाँ हैं कि -
ReplyDeleteसच कहता हूँ तो इल्जाम है बगावत का।
चुप रहूँ तो बेबसी सी होती है।।
और मैं कहना चाहता हूँ कि-
जीवन के हर दर्द का एक मीठा एहसास।
भूल के सब कुछ शुरू करें फिर हो एक प्रयास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
"सच कहने की जो अपनी आदत है।
ReplyDeleteउनके शब्दकोश में बग़ावत है।"प्रकाश भाई आम तौर पर इस तरह ब्लाग लिखने बंद करने के निर्णयों वाली पोस्ट पर मैं टिप्पणी नहीं करता लेकिन चूंकि आपने इसे मुझे मेल से भी भेजा है इसलिये कह रहा हूं कि आपका यह निर्णय बेतुका है। ब्लाग अभिव्यक्ति का खुल्ल्म-खुल्ला मंच है। जिसको जो मन आता है कहता है। अब आप इससे आहत हों तो अगले की बला से। आप लिखना बंद कर देंगे तो क्या फ़रक पड़ेगा? कुछ नहीं! एकाध दिन लोग आपको मनायेंगे आप मानेंगे तो ठीक नहीं मानेंगे तो लोग धीरे-धीरे आपको भूल जायेंगे (आपके दोस्तों के अलावा)
भड़ास के मंच की भाषा यही है। वे इसी भाषा में अपने को अभिव्यक्त कर पाते हैं। आपके लिये वे नयी भाषा कहां से लायेंगे?
सच कहने की आपकी आदत अच्छी है लेकिन ऐसा भी क्या सच कहना कि जबाब किसी ने बेहूदा दे दिया तो बोले हम चले। इतना छुई-मुई बनने से काम कैसे चलेगा?
एक तरफ़ आपको समीरलाल जी की बहुत विनम्र, अपने को बचाके संयमित , टिप्पणी करने वाली भाषा भी पसंद नहीं आती दूसरी तरफ़ भड़ासियों वाली भाषा भी अखरती है तो कोई क्या करेगा?
आपका आहत होना स्वाभाविक है। लेकिन इस तरह के ब्लाग लिखना छोड़ने का इश्तेहारी अंदाज सही नहीं है।
ज्यादा आहत हैं तो कुछ दिन ब्लागिंग से दूर रहें और इसके बाद फ़िर नई ऊर्जा के साथ शुरू करें!
संभव है कि आपको मेरी बात बुरी लगे लेकिन हमारा भी मन थोड़ा सच कहने का करता है कभी-कभी रहें और फ़िर नयी ताजगी के साथ शुरू हों।
आपको मेरी शुभकामनायें।
ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा क्यूंकि अनूप जी ने लगभग सब कुछ समेट दिया है .पिछले दिनों ब्लोगिंग से बाहर था इसलिए इस विवाद से हैरान हूँ हर तीसरे दिन कोई नया विवाद खडा हो जाता है ,.अभिव्यक्ति के सबके अपने तरीके है ,सबके अपने नजरिये ....इस उम्र में हमें भावनात्मक हड़बड़ी दिखाने की जरुरत नहीं है....माना की मन आहत है पर कुछ दिन शांत रहिये ,नयी उर्जा से लौटिये ....
ReplyDeletenamastey bhaiya..!!
ReplyDeleteaapke blog par aaj bahut dino baad aana hua... bahut kuchh soch rakha tha ki aaj kya kya baat kehni hai... wo sab likh kar jaunga.. par jab aapka ye lekh dekha to sab bhool gaya.. bahut hi bura laga ki log kisi ke bhi liye bina kuchh soche samjhe kuchh bhi likh dete hai.
aaj subah hi apni ek rachna puri kari thi usiki kuchh panktiyaan aapke liye likh raha hoon.
e khuda mere, insaan kyu mujhe bana diya tune,
koi shikaayat na hoti mujhe tujhse,
jo aadmi sa banaya hota tune muje.
aapse ek hi request hai ki aap blogging band na kare... likhte rahein... jab koi aage badhta hai to peechhe reh jane wale log kuchh galat hi kehte hai... unki heen bhaawana jhalakne lag jati hai unki baaton me.
आप पहले ये बताइये की ब्लॉग्गिंग में आपको प्यार ज्यादा मिला या नफरत |
ReplyDeleteयदि आज आपको नफ़रत मिली है तो पहले प्यार और प्रोत्साहन भी मिला है |
अब यह आप पर है की आप किसको ज्यादा महत्व देते हैं |
गालियों को इतना महत्व क्यों दे रहें हैं?
ब्लॉग्गिंग छोड़ने से क्या होगा ? यह समस्या तो जीवन में हर जगह मिलेगी |
यह भी याद रखिये की सच बोलने वाले को हर तक के झूठ को झेलने का साहस भी होना चाहिए |
भावुक होकर आपने जो फैसला किया है उसे बदल डालिए और ठसक के साथ हिंदी ब्लॉग्गिंग में बने रहिये |
यदि एक आदमी भी आपकी ग़ज़ल को पसंद करता तो वही पर्याप्त कारण है आपके यहाँ पर बने रहने के लिए |
चलिए इसी को लेकर एक जोरदार ग़ज़ल उतार डालिए |
Anup Shukla ji ki ek-ek baat ek ek harf se na kewal itfaq rakhta hoon balki meri pichli choti si tippani ke peeche bhi yahi chupa tha.....
ReplyDeleteप्रकाश जी
ReplyDeleteकिसी की टिप्पणी से कोई फर्क नहीं पढना चाहिए...........जिसको जो कहना है कहे..उसकी मर्जी...आपने जो लिखना है लिखें आपकी मर्जी.................आप बस चलते रहें...........बोलने वाले, गालियाँ देने वाले देते रहेंगे............आप को क्या करना .........कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं
न हो साथ कोई स्वयं ही चलो तुम
सफलता तुम्हारे कदम चूम लेगी
आप अपना सफ़र जारी रखें............पचास गाली निकालने वाले से एक प्यार करने वाले इंसान की ज्यादा माननी चाहिए........फिर आपको तो बहुत हैं प्यार करने वाले ........
आप शायर हैं बादल साहेब और शायर लोगों को मैदान में डटे रहने का पाठ पढाता है पीठ दिखा कर भाग जाने का नहीं...आपका निर्णय सर्वथा अनुचित है और उन ताकतों की विजय है जो अच्छे लोगों को लिखने नहीं देना चाहते...ज़िन्दगी में इस तरह की घटनाएँ बहुत कुछ सिखाती हैं इसे स्वीकार करना सीखिए...हर कोई गुलाब के फूल भेंट में नहीं दिया करता...
ReplyDeleteनीरज
आदरणीय प्रकाश जी,मैं निजी तौर पर आपके इस निर्णय से आहत हूं क्योंकि मैं देख रहा हूं कि कुछ ऐसे विरोधी जो कि सामने आए बिना ऐसा माहौल बना रहे हैं कि भड़ास पर ऐसा ठप्पा लग जाए कि वह जाहिल और कमीने किस्म के लोगों की चौपाल है। आप स्वयं देखिये कि शब्दों से कितनी गहरी चोट लगती है। आपकी प्रतिक्रिया के चलते फ़रहीन जी ने जो लिखा वह उनके निजी विचार रहे होंगे लेकिन इसका लाभ लेते हुए किसी ने अत्यंत कुटिलता पूर्वक ऐसा करा कि आप और हम दोनो दुःख और पीड़ा में घिर गये बस इस पीड़ा की अभिव्यक्ति कदाचित भाषाई स्तर पर भिन्न हो सकती है भड़ास की भाषा हिंदी की ग्रामीण,गंवारू, मुंहफट,मजदूर,मजबूर जनों नुमाईंदगी करती है जो कि बेचारे नहीं समझते कि बौद्धिक भाषा क्या होती है वे तो भगवान राम को भी सीधे ही "राम" कह लेते हैं। मेहरबानी करके आप दुष्टजनों की कुटिलता समझिये और लिखना हरगिज बंद मत करिये। जैसे आप परेशानियों से जूझ रहे हैं मैं भी ऐसे कुटिल बौद्धिक लोगों से लड़ रहा हूं जो हमारी भदेस जुबान ही काट देना चाहते हैं। आशा है आप इन षडयंत्रकारियों को सफल न होने देंगे।
ReplyDeleteजय जय भड़ास
भाई आप डटे रहें
ReplyDelete.
नीरज भाई तथा अन्य शुभचिंतकों ने जो सलाह आपको दी है,उसी पर अम्ल करें.
शायरों की ज़बान में जवाब दें.
कुछ दिनों से सफर के कारण जाल पर न आ सका. इस कारण देख न पाया.
ReplyDeleteअनूप ने सही लिखा है.
चिट्ठालोक में नुक्ताचीनी चलती रहती है और उसमें कई बार गलत आरोप लगा दिये जाते हैं. इससे निराश हो कर मत भागना.
नर हो न निराश करो मन को -- मैथिलीशरण गुप्त
सस्नेह -- शास्त्री
बादल जी
ReplyDeleteदरअसल कुछ लोग भड़ास ब्लाग से निकाले गए थे, वे लोग भड़ास नाम से ही एक अलग ब्लाग बनाकर दूसरों के मानमर्दन का अभियान चला रहे हैं। उनका काम ही है दूसरों को गरियाना। आप उनकी बातों को अन्यथा ना लें और अपने काम में जुटे रहें। कुछ कुंठित और अश्लील किस्म के लोगों से डरकर अगर आप यूं ही भागने का निर्णय लेते रहेंगे तो फिर तो आपका जीना मुहाल हो जाएगा। वे लोग कभी हरकीरत को निशाना बनाते हैं तो कभी बादल को तो कभी संजय सेन सागर को तो कभी यशवंत सिंह।
इन विरोधों से मजबूत होना सीखिए। आपकी धमक ऐसी है कि वे लोग अश्लीलता पर उतारू हो गए हैं, यही आपकी जीत है।
आभार के साथ
यशवंत सिंह
प्रकाश जी....ये तो एकदम नाइंसाफी है हमारे प्यार और स्नेह के साथ
ReplyDeleteफुरसतिया देव ने जितने सही शब्दों में सारा वाकिया समेटा है, उसके बाद तो कहने को कुछ शेष रह ही नहीं जाता..
मैं तो बस इतना कहना चाहूँगा कि यदि आप यूं चले गये तो इससे यही साबित होगा कि हम सब का स्नेह इन गिने-चुने भड़ासियों की करतुतों के समक्ष कमजोर पड़ गया.....
आपको किसी के आगे खुद को साबित करने की जरूरत क्यों पड़नी चाहिये?????
"तुम खेल में रोते हो?" - रंगभूमि में प्रेमचंद
ReplyDeleteआपने मेरी पिछली टिप्पणी अपने पूर्वाग्रह के कारण हटा दी है जबकि उसमें मैंने स्पष्ट लिखा था कि कोई भड़ास को सचमुच लेखन के क्षेत्र में आतंकवादी जैसी स्थिति में ला देना चाहता है। यदि आपके जूता मारने के बदले में फरहीन जी ने सी-बाक्स पर आपको एक कविता देखने की सलाह दे दी और उसके बदले में जो हुआ आपके अनुसार वह एक षड़यंत्र के तहत हुआ तो आपको मेरी क्षमा प्रार्थना की टिप्पणी प्रकाशित करने में गुरेज़ क्यों है क्या सचमुच आपने आवेश में आकर फरहीन जी को गरिया दिया था और अब उस पर लीपापोती करने के लिये हमें आतंकवादी और खुद को लेखन का गांधी सिद्ध करना चाहते हैं? आपका मंच है आप इस टिप्पणी को भी हटा सकते हैं ताकि हम आतंकवादी और आप गांधी बने रहें लेकिन ध्यान रखिये कि अगर आगे कभी छपास और प्रसिद्धि की प्यास उठी तो क्या करेंगे? बस भी करिये भाईसाहब ये नखरेबाजी है गांधी का अंदाज़ तो हरगिज़ नही... कम से कम भड़ासी अपने चरित्र को मुखौटे की तरह बदलते तो नहीं है अब देखना है कि आप में कितना आत्मबल है सत्य स्वीकारने का....
ReplyDeleteजय जय भड़ास
प्रकाश जी ,
ReplyDeleteअनूप जी की बातों से सौ प्रतिशत सहमत हूं ! ब्लॉग है ही वह जगह जहां बेबाकी और बदतमीजी एक दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमन करती रहती हैं ! कुछ दिन दीन दुनिया में दिल लगाइए दोबारा खुद बखुद ही इस दिनिया से जुडाव महसूस करेंगे ! ब्लॉग एक मेहनत से पैदा किया गया करेक्टर है उसे मारिए मत !
देखिये उस पोस्ट को देखने के बाद इस विषय में मेरा विचार यह है कि यदि जो टिपण्णी दिखाई गयी है यदि वो आपने ही लिखी है तो आपका निर्णय सही है, मैं उस निर्णय का स्वागत करता हूँ क्यूंकि आपके चले जाने में ही ब्लॉगजगत की भलाई है और यदि आपने नहीं लिखी है तो फिर जाने का सवाल ही नहीं उठता ... मस्ती से ब्लॉग्गिंग करिए और जिसको जो कहना है कहने दीजिये और अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करते हुए लोगो को जबाब भी दीजिये ....
ReplyDeleteजैसे ही मुझे पता चला था-बहुत दुखी हुआ- और आज वाकये के तीसरे-या दूसरे दिन यहाँ पर लिख रहा हूँ; इसका भी एक मतलब है- पहले तो मैं लिखना ही नहीं चाहता था-फिर जब लिखने का सोचा तो जो घटा उससे ज़्यादा घटने की संभावनाएं जोर पकड़ रही थीं-इसलिए मैं बर्फ के पानी से नहा-नहा के आज बस यही कहना चाहूंगा यहाँ पे कि;
ReplyDelete--
आप ब्लॉग की जगह खुद की साईट पर आ रहे हैं अब लिखने. [यह मैं छोटा भाई होने के नाते कह रहा हूँ] और ब्लॉग पर भी लिखते हैं तो अब कोई बात नहीं! चोरों का काम है चुराना, और मेहनतकशों की इमानदारी है मेहनत करके मुकाम पाना!
और जो लोग बदनाम होके नाम कमाने के तरीके तलाशते हैं; असल में उनकी कूबत नहीं कि वो इतना माद्दा रखते हों कि बिना-हेरा-फेरी के वो कुछ भी कर सकें. इस कमेन्ट को पढने वाले (हेरा-फेरी- के जितने भी अर्थ निकाल सकें निकाल लें- चूँकि मैं लिखूंगा तो किताब हो जायेगी) मेरा व्यक्तिगत मानना है ऐसे लोग अगर कुछ बक दें तो कुछ बोलना ही नहीं चाहिए-इसका तात्पर्य होता है कि आपका वश खुद अपनी जुबान पर उन शब्दों के लिए नहीं है-जो आपको सभ्य और महान नहीं बनाते!
--
जो लोग थोडा-बहुत भी "प्रकाश बादल" को जानते हैं. उनमें से किसी के लिए भी यह छुपा नहीं होगा- कि "सी बॉक्स" का प्रयोग जो जिस उद्धेश्य के लिए चाहे कर सकता है. असल में यह हुआ ही-जिसने बादल और उनके जानकारों के बीच भी
"इतना घटिया" सा कह देनी की शंका पर ला खडा कर दिया" मुझे हैरत इसलिए भी है चूँकि जिनकी रचनाओं पर ५० कमेन्ट आती थीं; उनके साथ इतना कुछ होने के बाद अभी तलक २० कमेन्ट आए हैं!
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सच कहा कि एक रचनाकार द्वारा पाठक का पाठ पहुंचाने के इक नहीं तमाम रास्ते हैं! और मैं तो आपकी कूबत इतनी समझता हूँ कि लोग खुद आपके पास जाकर कहेंगे कि आप सिर्फ लिखिए-वाकी का काम हमारा है, फिर ये बहुत ही छोटी बातों पर दिमाग खराब करना... और फिर अब जो भी रचना चुराना चाहे-शौक़ से चुराए! - बस आप अपना इन सबसे ध्यान हटा लें-
--
सच कहूं तो इस तरह के मुद्दे को आपने खुद भी पढा अजीब लगा. आपको तो ध्यान ही नहीं देना चाहिए था! और क्षणिक आवेग में आकर आपने जो निर्णय लिया अपने ब्लॉग का-वह मुझे "बादल" की सोच नहीं लगती!
--
बाकी इन लाइनों के जरिए-
--
वो तकते हैं तुम्हारे लबों की जानिब ए-भाई
जिनकी जुबां लौटाने का वादा किया है तुमने!
--
दो टकों की बातों पर अपना ध्यान न दो
इंसान हो तुम इसलिए हैवां को ईमान न दो
---
[अमित के सागर]
रूह तपती रहती है, कोई बम्ब जिस्म में बनती रहती है!
अब आपकी इस पोस्ट पर क्या टिप्पणी दू । आप तो मुझे अच्छे से जानते है । लठ मार आदमी को ज्यादा समझ नही है । आपकी इस पोस्ट पर मुझे अमर प्रेम फ़िल्म का यह गीत याद आ रहा है ’ कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का तो काम है कहना । छोडो बेकार की बातो को कही बीत ना जाये रहना॥ भाई बाकी बाते चैट पर करूंगा ।
ReplyDeleteदेख लीजिए इसे कहते हैं चोर की दाढ़ी में तिनका... लेकिन इस चोर की तो दाढ़ी भी नकली है अब ये साधुता दिखा रहा है,आपने जैसे ही डा.रूपेश श्रीवास्तव की टिप्पणी प्रकाशित करी तो यशवंत सिंह शराफ़त का पुतला बन कर जमात में आकर सुर मिला कर भड़ासियों को कोसने लगे। इन्होंने ये नहीं बताया कि इन्हें अपने ब्लाग का नाम क्यों बदलना पड़ा? यशवंत बाबू ये भी लिख देते ताकि कुछ ज्यादा सहानुभूति बटोर पाते। खुद को प्रकाश भाई के बराबर खड़ा करने में जुट गये कि भाई देखो मैं भी भड़ासियों द्वारा एक मासूम उत्पीड़ित भला आदमी हूं ये लोग कुंठित हैं अश्लील हैं और मैं संत किस्म का वणिक हूं :-)
ReplyDeleteअमित के सागर जी,
ReplyDeleteमैं नहीं मानती कि हमने रचना चोरी पर आवाज़ उठा कर कोई गलत कार्य किया है ...ये और बात है कि इसे गलत अर्थों में लिया गया और बेवजह इतनी बहस हो गयी ...!!
प्रकाश जी, ये दूसरा कमेंट पहले वाला कहा चला गया... मालूम नहीं...उसमे बस यही कहा था के इस पोस्ट पर कुछ भी माडरेट ना करे
ReplyDelete.....एकदम खुला छपने दें....
अभी तक ऊपर दी गई तिपन्नियो से जाने आप कुछ समझे या नहीं,,,,, अभी भडास वाला कोई आपको मीटर में लिखने को कह दे तो देखिये आप कैसे be meetaree गजल पे गजल छपते हैं.... और हम लोग जो तीन दिन से आपको समझाए जा रहे है हमारा कुछ नहीं,,,, आ
भडास के बारे में आपने जो कमेंट आते ही कर दिया था.....उस पर मैं पिछले दो हफ्ते से नजर रखे था.....और ये भी समझ गया था के मामला केवल रचना की चोरी का नहीं है......उन लोगों की कोई और ही बात है..जिसके बारे में हमें ज्यादा कुछ नहीं पता.....शायद किसी हिजडे के ब्लॉग लिखने के हुए विरोध से या उसे बढावा ना दिए जाने के कारण वो लोग आहात हैं सो इस तरह से अपनी भडास निकाल रहे हैं...( जहां तक मुझे समझ में आया है ) और यदि यही बात है तो इस बात का दुःख मुझे भी है....भले ही उनका तरीका गलत हो ..पर इस बात पर मैं भी उनसे असहमत नहीं हो पा रहा हूँ.....क्यूनके लेखन को यदि मैं स्त्री पुरुष के दायरे में नहीं बांधता तो लैंगिक विकलांगता के दायरे में भी नहीं बांधूंगा ...लेखन से ...विचारों की आभिव्यक्ति से लिंग का, उम्र का जात पात धर्म देश का कोई मतलब नहीं समझता मैं... अब आपने हर पहलू पर गौर किये बगैर अपने मासूम अंदाज में कमेंट कर दिया,,,,, हाँ उन लोगों ने आपकी बात का जवाब aapke अंदाज में देने के बजाय एक अजब से छल के साथ दिया .....आपको बदनाम कने की कोशिश की......इस बात का मैं विरोध करता हूँ,,,,आप भी करें मगर इस तरीके से नहीं...... सच कहता हूँ ये तरीका तो उन लोगों को भी पसंद नहीं आयेगा जिन से आप और हम आहात हुए हैं....हाँ आप अपना सी बॉक्स हटा सकते हैं...अपनी कविताओं को तिपन्नियो की अभद्रता से बचाने के लिए मोडरेट कर सकते हैं...... कविता चोरी से ज्यादा ही बचना चाहते हैं तो अपने ब्लॉग को केवल आमंत्रित पाठकों के लिए बना सकते हैं..... जिसे आप चाहयूंगे वही आयेगा......वही देख पायेगा.... आप चाहे साल में एक ही रचना डालें... पर ये कदम उठा कर अआप हम सब को ना केवल बेइज्जत कर रहे हैं ...बल्कि हिंदी ब्लॉग जगत को कमजोर भी बना रहे हैं..... इसी ब्लॉग जगत ने आपको हम लोगों से जोडा है..... क्या इसे यही देकर जायेंगे आप.............?
अनूप जी की बात सुनिये.
ReplyDeleteएक तरफ बड़ा भाई कहते हो और दूसरी तरफ इतनी बड़े निर्णय में कोई सलाह तक लेना नहीं जरुरी समझते.
किसके लिए लिखते हो जो किसके कहे का बुरा मान कर चले?? बताना तो जरा.
एक दो दिन में सहज होकर नई पोस्ट लाओ, बस!!! इतना ही कहना है अभी.
क्या माने रखते हैं बहरे आवाज़ों के बीच॥
ReplyDeleteजीना है तो कुछ मत कह रे आवाज़ो के बीच।
प्रकाश जी,
ReplyDeleteआपने मेरी पहली टिप्पणी प्रकाशित नहीं की ये मोडरेशन उन लोगों के लिए है जो गलत कार्य करते हैं जब मैंने इतना कुछ हो जाने पर नहीं लगाया तो आप किस बात का डर...? प्रकाश बादल को सभी जानते हैं वे क्या हैं और क्या लिखते हैं ....खैर मैं ज्यादा नहीं लिखुगी और आप भी ये ब्लॉग बंद नहीं करेगें ..... अब आप ये घोषणा कर दें कि आपने अपना इरादा बदल लिया है ताकि हमें तसल्ली हो सके.... !!
प्रिय हरकीरत जी,
ReplyDeleteमैं भी कहाँ मानता हूँ कि रचना चोरी पर आवाज़ उठाके कोई गलत कार्य हुआ है! हाँ मगर इस आवाज़ में बहुत अफ़सोस है-बेसुरी हैं ये आवाजें; बुराई के खिलाफ जब तक एक सुर नहीं होता- खिलाफत और मुखालत तनहा ही होती है.
और बाद में जो हुआ वो bhi सब सबके सामने है!
- एक sabhy और उम्दा रचनाकार को असभ्य और गिरा हुआ दिखाने की कोशिश!
- सबूत के तौर पर उन सारी तिकड़मों का प्रयोग जो पहली नज़र में किसी को भी भ्रम में डाल दें.
दरअसल, अगर आप गौर करें तो इसी मुद्दे से कई सवाल ऐसे पैदा हुए हैं जिनसे आदमी आज से ही रू-ब-नहीं है-सदियों से है. कुत्ते की पुँछ की तरह! जब तलक बुराइयों के खिलाफ चलने वाली मुहिमों में एक सुर नहीं होगा-द्वेष की कोई निजी भावना होगी, कोई निजी स्वार्थ रहेगा- निर्णय कभी भी अच्छाई के हक में निर्णायक नहीं होगा-
--
मेरे ख़याल से भाई जी इस मुद्दे को कंप्यूटर से किसी फाइल की तरह डिलीट कर दो प्लीज़...नहीं तो मैं अपना संतुलन खो रहा हूँ...
सब गया ऐसी तैसी में- आपको जिस बन्दे या बंदी ने इस तरह प्रस्तुत किया है- आप उससे बात करो...ज़बाव दो उसे...मुंह तोड़...ऐसा सबक, जिसे इतिहास खुद-ब-खुद लिखे...
आदरणीय भाईसाहब नमस्ते
ReplyDeleteमैं हूं वो लैंगिक विकलांग हिजड़ा कहकर पुकारी गई इंसान जैसी दिखने वाली चीज़ जिसके बारे में मनु जी ने लिखा है। आशा है कि आप अब असल षडयंत्रकारियों को पहचान पा रहे होंगे सत्यतः बौद्धिक आतंक तो ये फैलाते हैं। आप सभी ने एक कविता के "चोरी" के प्रकरण में इतनी संवेदना दिखाई लेकिन्न एक पूरा ब्लाग ही डाका मार लिया गया इस पर बोलने का किसी का साहस न हुआ। चोर किन परिस्थितियों में चोरी करता है जरा अपने संवेदनशील दिल से पूछियेगा और एक ब्लाग की चोरी के प्रकरण पर अपने विचार दीजियेगा,देखना है कि निष्पक्षता का क्या स्तर है या बस यूं ही जूता उठा लेते हैं?
प्रिय बहन मनीषा जी,
ReplyDeleteजिसने भी आपको विकलाँग कहा है,असली विकलाँग तो वो है,जिसने भी आपका ब्लॉग चुराया है मैं उसके भी ख़िलाफ हूँ और मैं उसका विरोध ठीक उसी तरह करता हूँ जिसमें तरह हरकीरत जी के साथ मैं रहा हूँ। आपके आरोप अगर सच्चे हैं तो आपके साथ बिल्कुल न इंसाफ़ी हुई है। मुझे न इस बात की जानकारी थी कि आपका ब्लॉग चोरी हुआ है न ही इस बात की कि आपको किसी ने विकलाँग कहा। अगर ऐसा हुआ है तो मैं ऐसा कहने वालों का सीधा-सीधा विरोध करता हूँ। लेकिन आपने क्या इस पर गौर किया कि किसी ने मेरे ही ब्लॉग पर मुझे गालियाँ लिखने का आरोप लगा डाला। मेरा कुसूर मात्र इतना था कि मैने हरकीरत की रचना चोरी की बात को कड़े शब्दों में विरोध के रूप में दर्ज़ कर दिया। जिस भाषा के प्रयोग का मुझ पर इल्ज़ाम लगा है उसकी मैं कल्पना भी नहीं करता। ग़लत को ग़लत कहना कहाँ का गुनाह है। अपनी रचनाओं को प्रकाशित करवाने के आग्रह तो मुझे देश की कई पत्र-पत्रिकाओं से आते रहते हैं और कई कवि गोष्ठियों में भी मैं भाग लेता रहता हूँ, लेकिन ब्लॉगिंग जगत में मैंने इसलिए आना चाहा कि मैं एक ऐसा परिवार बनाऊँ जहाँ दोस्ती और स्नेह की ख़ुश्बू मेरे जीवन को रौशन करे। लेकिन जब मुझे ब्लॉगिंग जगत में बदनामी और मेरे व्यक्तित्व को सरे बाज़ार बदनाम किया जाए तो ऐसी ब्लॉगिंग का क्या लाभ अगर लड़ाई आपको विकलाँग कहके ग़ाली देने मात्र की है तो इस लड़ाई में मुझे बदनाम करने का क्या मकसद? हरकीरत के ब्लॉग़ पर मैंने जिन लोगों के खिलाफ टिप्पणी की है अगर वो सच है तो उस सच को सीधे-सीधे स्वीकारने में क्या नुक्सान है। लेकिन इस तरह बदनामी के दलदल में मुझे घसीटने के पीछे क्या कारण हैं। आपको जो विकलाँग कहते हैं वो लोग स्वस्थ समाज के नाम पर काला धब्बा है। लेकिन जिसने भड़ास पर मेरे ख़िलाफ इतनी झूठी पोस्ट छाप दी उसमें क्या इतना भी साहस बाकी नहीं कि वो अपनी ग़लती की सीधी-सीधी माफी माँगे?
रही आपको प्रताड़ित किये जाने की बात तो उसमें मैं खुल्लम ख़ुल्ला आपके साथ हूँ और आपके साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहने का हौसला और दम रखता हूँ। मैंने इस मामले पर किसी भी टिप्पणी का जवाब इसलिये नहीं दिया क्योंकि मैं जान बूझ कर इस मामले को तूल नहीं देना चाहता। लेकिन मैंने आपके दूख में अपनी सहानुभूति की आहुति देना ज़रूरी समझा, इसीलिए इतना लम्बा चौड़ा कमैंकमैंट लिख डाला। ताकि आपके मन में इस प्रकार की कोई भावना न रहे कि मैं भी उन्हीं "विकलांग" लोगों की तरह हूँ जो आपको विकलाँग कहते हैं ऐसे लोगों का साथ देना मेरे लिए गुनाह है और मैं आपके साथ हूँ
सादर!
बडी दुखद घटना है, ऐसा नहीं होना चाहिए था।
ReplyDelete----------
जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
निश्चित ही आहत करने वाली भाषा का प्रयोग किया गया है वहा | ! किन्तु देखा जाय तो यह तो यश फैलने के चिन्ह है ! किसी भी बड़े आदमी की कहानी उठाकर देख लिजिये !यह सब तो होता रहता है ! चिंता न करे !हम सब आप के साथ है !
ReplyDeleteअब क्या प्लानिंग की है भाई,,,,,?
ReplyDeleteबिना मोदिरेट किये कुछ तो कहो,,,?
bhaiya... bas kaafi ho gaya... itne din ho gaye aapne kuchh likha nahi apne blog par... ab fir se likhna shuru kar dijiye...
ReplyDeleteya fir main har roz aapke blog par aakar ek comment zarur likh kar jaunga...
wo bhi tab tak jab tak aap fir se blogging shuru nahi karte...
or ho saka to or bhi logo se kahunga ki wo bhi aisa hi kare....
:(
:(
:(
pls..pls... fir s blogging shuru kar dijiye... pls...
:(
bhaiya... likhna shuru kariye....
ReplyDelete:(
bas kaafi ho gaya...
ReplyDeleteab to likhna shuru kar dijiye...
waise muje is baare me zyada pata nahi h... kyuki me sirf aapko jaanta hoon or kisi ko nahi or puri baat shayad sahi tarike se mujhe maaloom bhi na ho...
par aapse to yahi request karunga ki aap fir s likhna shuru kariye...
pls... pls... pls... pls... pls...
प्रकाश जी
ReplyDeleteफिर से लिखना शुरु कीजिए...
logo ke kahne ko dil pe le lena sahi nahi hai. kisi ke aarop lagane se aap apradhi nahi ho gaye hain. aap swayam jaante hai aap kahan khade hain. aap likhna band karke un logo ki baat ko sahi sidd kar rahe hain mere vichar mein aapka likhte rahna hi aise logo ke liye jawab hai. aap apne andar ke kalakar ko kisi ke kahne se kaise maar sakte hain, mere vichar mein ye katal hi hai.
ReplyDeleteगुरू .....यह बात कुछ समझ में नहीं आई...किसी ने आप को भला बुरा कहा और आप चल पड़े फेल छोड़ कर....यार आपने तो हमारे साथ पत्रकारिता भी की है...एक पत्रकार इतना उतावला कैसे हो सकता है...मन की आपको भडास की बकवास पसंद नहीं आई तो आप भी लिखो....उनके लिए....ब्लॉग मंच ही अपने मन की बाते कहने के लिए है। पर घोषित करके लिखना छोड़ना कुछ शिष्ट नहीं लगा। अब यह मत कहना की में तुम्हारी बुरे कर रहा हूँ दोस्त हूँ तो समझाने का भी हक है मुझे.... यार मेरा दावा हैं की तुम लिखना नहीं छोड़ सकते फिर ड्रामा क्यों .....मै तो कहता हूँ नाचना ही है तो नखरे क्यों जी भर कर नाचो मेरी जान....तोड़ दो फर्श..
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