जब-जब मैं सच कहता हूं।
सब को लगता कड़वा हूं।
वो मेरी टांग की ताक में है,
कि कब मैं ऊपर उठता हूं।
जो भी नोक पर आते हैं,
बस उनको ही चुभता हूं।
उम्र में जमा सा बढ़ता हूं,
जीवन से नफी सा घटता हूं।
तू जो मुझ पर मरती है,
इसीलिये तो जीता हूं।
वो नाखून दिखाने लगते हैं,
घावों की बात जो कहता हूं।तूफान खड़ा हो जाता है,
जब तिनका-तिनका जुड़ता हूं।
सब को लगता कड़वा हूं।
वो मेरी टांग की ताक में है,
कि कब मैं ऊपर उठता हूं।
जो भी नोक पर आते हैं,
बस उनको ही चुभता हूं।
उम्र में जमा सा बढ़ता हूं,
जीवन से नफी सा घटता हूं।
तू जो मुझ पर मरती है,
इसीलिये तो जीता हूं।
वो नाखून दिखाने लगते हैं,
घावों की बात जो कहता हूं।तूफान खड़ा हो जाता है,
जब तिनका-तिनका जुड़ता हूं।
'जब-जब मैं…'
ReplyDeleteसुन्दर।
उम्र में जमा सा बढ़ता हूं,
ReplyDeleteजीवन से नफी सा घटता हूं।
bahot khub likha hai shandar....jari rahe ..
शुक्रिया डॉ0 अमर ज्योति जी आपके स्नेह के लिये।
ReplyDeleteअर्ष भाई शुक्रिया।
ReplyDeleteउम्र में जमा सा बढ़ता हूं,
ReplyDeleteजीवन से नफी सा घटता हूं।
वो नाखून दिखाने लगते हैं,
घावों की बात जो कहता हूं।
waah bahut khub ,ye do sher to lajawab rahe
शुक्रिया महक ज़ी आपका!
ReplyDeletelast line is ver good
ReplyDeleteAjay
सुंदर गजल ..और लिखिए .स्नेह और सहयोग का बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteBhai Prakash Badalji,
ReplyDeleteAapki gazal padhi,katthya aapka thik hai lekin shilp to kamjore hai hi. men ise sudharne ki koshish kar raha hoon; dekhen.
jab jab men sach kahata hoon
sabko lagata kadava hoon
meri taang ki tak men wo
kab men upar uthata hoon
meri nok pe ate jo
bas unko hi chubhata hoon
umra jama si badhati hai
jeevan lekin ghatata hai
tu jo mujh per marati hai
is karan men jeeta hoon
wo nakhoon dikhata hai
jab ghavon ki kahata hoon
aata hai toofan agar
tinka tinka judata hoon
Is gazal ki bahar banati hai (SS SS SSS) aur ab ye poori tarh se bahar men ho gayee hai. Ve hi shabd hain kewal unke stthan badalane se bahar ban jati hai.
Agar gazal likh rahe hain to bahar men likhane ka prayas kare. Aap bahut achchha aur sunder likh rahe hain.Meri shubhkamnayen.
chandrabhanbhardwaj.4@gmail.com
बहुत उम्दा गज़ल है प्रकाश भाई.
ReplyDeleteतूफान खड़ा हो जाता है,
जब तिनका-तिनका जुड़ता हूं।
बहुत खूब कहा!!
आदरणीय चंद्रप्रभा जी,
ReplyDeleteआपके स्नेह के लिये आभार
आपने जो मेहनत की है उससे यह स्पष्ट है कि आप गज़ल लेखकों को प्रोत्साहन देते है।
मेरी कोशिश रहेगी कि मैं जो लिखूं मीटर में आ जाए। स्नेह बरकरार रखें
भाई समीर लाल जी,
ReplyDeleteआपके निरंतर प्रोत्साहन से बेहद खुश हूं। आपकी प्रतिक्रिया इसी तरह जारी रहेगी, मुझे पूरा विश्वास है।
अजय जी,
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिये शुक्रिया।
उम्र में जमा सा बढ़ता हूं,
ReplyDeleteजीवन से नफी सा घटता हूं।
bahut hi gahri baat kahi hai aapne.
तूफान खड़ा हो जाता है,
जब तिनका-तिनका जुड़ता हूं।
lajwaab khayal...bahut umda
sabhi sher kuch na kuch maayne liye hue hain..aur bahut acche hain..
badhai aapko..