इरादे जिस दिन से उड़ान पर हैं।
हजारों तीर देखिये कमान पर हैं।
लोग दे रहे हैं कानों में उँगलियाँ,
ये कैसे शब्द आपकी जुबां पर है।
मेरा सीना अब करेगा खंजरों से बगावत,
कुछ भरोसा सा इसके बयान पर हैं।
मजदूरों के तालू पर कल फिर दनदनाएगा,
सूरज जो आज शाम की ढलान पर है।
झुग्गियों की बेबसी तक भी क्या पहुंचेगी,
ये बहस जो गीता और कुरान पर है।
मजदूर,मवेशी, मछुआरे फिर मरे जाएंगे,
सावन देखिये आगया मचान पर है,
मक्कारों और चापलूसों से दो चार कैसे होगा,
तेरे पैर तो अभी से थकान पर है ।
हजारों तीर देखिये कमान पर हैं।
लोग दे रहे हैं कानों में उँगलियाँ,
ये कैसे शब्द आपकी जुबां पर है।
मेरा सीना अब करेगा खंजरों से बगावत,
कुछ भरोसा सा इसके बयान पर हैं।
मजदूरों के तालू पर कल फिर दनदनाएगा,
सूरज जो आज शाम की ढलान पर है।
झुग्गियों की बेबसी तक भी क्या पहुंचेगी,
ये बहस जो गीता और कुरान पर है।
मजदूर,मवेशी, मछुआरे फिर मरे जाएंगे,
सावन देखिये आगया मचान पर है,
मक्कारों और चापलूसों से दो चार कैसे होगा,
तेरे पैर तो अभी से थकान पर है ।
अच्छा लिखा है आपने। यूं ही लिखते रहें, सदियों तक...
ReplyDeleteइस दीपावली के मौके पर मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें। मेरी दुआ है कि अगली दीपावली तक आपकी गजल की किताब मेरे हाथों में हो।
लिखते रहें... दीपावली की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपकी रचनायें पढीं. अत्यंत आनंद आया. मैंने आपके साईट को फोल्लो कर लिया है. उम्मीद है आपको भी हमारी कवितायें पसंद आएँगी और आप हमारे साईट को फोल्लो करेंगे.
ReplyDeleteधन्यवाद.
आप की रचनाऐ अच्छी हैं आप की सोच लाजवाब है
ReplyDeleteआदिल जी, आपका शुक्रिया। और अच्छा लिखूंगा।
ReplyDeleteआपकी गज़लें मुझे बहुत अच्छी लगी दस बार पढ़ चुका हु फिर भी पढ़ने को बेताब रहता हूँ
ReplyDeleteअरविन्द भाई,
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया ने मुझे जो प्रोत्साह्नन् दिया है, उससे मैं बेहद उत्साहित हुआ हूं। भविष्य में भी आपकी प्रतिक्रिया मिलती रहेगी, तो आभारी रहुंगा।
बहुत खूब आपकी ग़ज़ल पढ़कर कार्ल मार्क्स की याद आ गयी दास कैपिटल की कुछ बातें आज के समाज में कितनी सटीक है. कविता तो बहुत पढ़ी इस विषय पर ग़ज़ल पहली बार. आपकी शुभ कामनाओ के लिए आभारी हूँ! लिखती तो अपने स्कूल के दिनों से हूँ पर प्रकाशित करने या ब्लॉग पर डालने का समय नहीं मिल पता पढाई के चलते!
ReplyDeleteआपकी ग़ज़लों को पढा। यदि कोई सुझाव देता है तो उनकी गम्भीरता के आधार पर उन्हें अवश्य स्वीकार कीजिए। मेरा भी एक सुझाव है। आप हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित ग़ज़ल और उसका व्याकरण अवश्य पढिए।
ReplyDeleteफ़ोन 09368141411
आदरणीय अग्रवाल जी,
ReplyDeleteआपका सुझाव सर आंखों पर। व्याकरण में रहना मुझे पसंद नहीँ हैं, जब मैं किसी नियम में बंध कर लिखता हूं तो मेरे बहुत सारे भाव मुझे आत्म्हत्या की धमकी दैते हैं, मैं व्याकरण से अधिक अपने भवों के ज़िंदा रहने को प्राथमिकता देता हूं, फिर भी आप के सुझाव को किसी हद तक मानने का प्रयास करूंगा.
सादर
प्रकाश बादल
सुरभि जी,
ReplyDeleteआपने मेरी गज़लों को सराहा और आपको अच्छी लगी मुझे बहुत खुशी हुई। भविष्य मेँ और भी अच्छा लिखने का प्रयास रहेगा।
शुक्रिया
सशक्त अभिव्यक्ति है!
ReplyDeleteआज कई रचनाओं को दुबारा पढा एवं बहुत अच्छा लगा.
रचनात्मकता को जीवंत रखो, बहुत आगे जाओगे.
आदरणीय शास्त्री जी,
ReplyDeleteसादर नमन,
आपसे एक बार फिर मिलकर अच्छा लग रहा है,
आपके प्रोत्साहन से बहुत ऊर्जा मिलती है। आशा है स्नेह बनाए रखेंगे। आपसे बहुत कुछ सीखना है। सादर
प्रकाश बादल
वाह ! बहुत बहुत सुंदर,भावपूर्ण पंक्तिया है.बहुत सुंदर लिखतें हैं आप.ऐसे ही लिखते रहें,मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
ReplyDeleteरंजना जी,
ReplyDeleteएक बार फिर आपका धन्यवाद। भविष्य मेँ भी आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी। बहुत से लोगों ने मेरी लेखनी को खारिज करने का प्रयास करना चाहा है, उसे आप जैसे ही प्रशंसकों ने ही बचा रखा है।
मजदूरों के तालू पर कल फिर दनदनाएगा,
ReplyDeleteसूरज जो आज शाम की ढलान पर है।
झुग्गियों की बेबसी तक भी क्या पहुंचेगी,
ये बहस जो गीता और कुरान पर है।
ये तो संघर्ष की ज़िंदगी के चिन्ह हैं.
बहुत अच्छा लिखा है
आपके स्नेह ने मुझे उल्लास से भर दिया है
ReplyDeleteशुक्रिया।
आपके स्नेह ने मुझे उल्लास से भर दिया है
ReplyDeleteशुक्रिया।
आपके स्नेह ने मुझे उल्लास से भर दिया है
ReplyDeleteशुक्रिया।