सच ढूंढ्ता रहा शहादत देखिये।
झूठ की हो भी गई ज़मानत देखिये।
अब मौत के आसार हैं ज़्यादा क्योंकि
कड़ी कर दी गई है हिफ़ाज़त देखिए।
भ्रष्टाचार का जंगल तैयार क्यों न हो,
वृक्षारोपण कर रही है सिसायत देखिये।
घरों को बौना रखने के आदेश जो दे गये है,
आसमान चूमती उनकी आप ईमारत देखिये।
विज्ञापनों के खूंटे में टंगा अखबार,
क्या लिखेगा सच की इबारत देखिये।
झूठ की हो भी गई ज़मानत देखिये।
अब मौत के आसार हैं ज़्यादा क्योंकि
कड़ी कर दी गई है हिफ़ाज़त देखिए।
भ्रष्टाचार का जंगल तैयार क्यों न हो,
वृक्षारोपण कर रही है सिसायत देखिये।
घरों को बौना रखने के आदेश जो दे गये है,
आसमान चूमती उनकी आप ईमारत देखिये।
विज्ञापनों के खूंटे में टंगा अखबार,
क्या लिखेगा सच की इबारत देखिये।
अब मौत के आसार हैं ज़्यादा क्योंकि
ReplyDeleteकड़ी कर दी गई है हिफ़ाज़त देखिए।
--क्या बात है!! बहुत उम्दा!!
सशक्त भावपक्ष। शिल्प को थोड़ा और कस लें तो सोने में सुहागा हो जाय। बधाई।
ReplyDeleteआदरणीय समीर लाल भाई,
ReplyDeleteआपके स्नेह और प्रोत्साहन के लिये शुक्रिया, स्नेह बनाए रखें
आदरणीय डाँ0 साहब,
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिये धन्यवाद आपके सुझावों पर गंभीरता से विचार करूंगा । भविष्य में भी आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा रहेगी।
This is wonderful at all.
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